Thursday, July 28, 2016

परमात्मा इतने निकट है, हम आँख ही नहीं उठाते !!!


एक प्रेमी था, वह दूर देश चला गया था। उसकी प्रेयसी राह देखती रही। वर्ष आए, गए। पत्र आते थे उसके, अब आता हूं, अब आता हूं। लेकिन प्रतीक्षा लंबी होती चली गई और वह नहीं आया।
फिर वह प्रेयसी एक दिन खुद ही चल कर उस जगह पहूंच गई जहां उसका प्रेमी था। वह उसके द्वार पर पहूंच गई, द्वार खुला था। वह भीतर पहूंच गई।
प्रेमी कुछ लिख रहा था, वह सामने ही बैठ कर देखने लगी, की कब वह लिखना बंद करे और उस की तरफ देखे. प्रेमी उसी प्रेयसी को पत्र लिख रहा था। और इतने दिन से उसने बार - बार वादा किया और टूट गया तो बहुत – बहुत क्षमाएं मांग रहा था। बहुत - बहुत प्रेम की बातें लिख रहा था, बड़े गीत और कविताएं लिख रहा था। वह लिखते ही चला जा रहा है। उसे पता भी नहीं है कि सामने कौन बैठा है।
आधी रात हो गई तब वह पत्र कहीं पूरा हुआ। उसने आँख ऊपर उठाई तो वह घबड़ा गया। समझा कि क्या कोई भूत- प्रेत है। वह सामने कौन बैठा हुआ है? वह तो उसकी प्रेयसी है। नहीं लेकिन यह कैसे हो सकता है। वह चिल्लाने लगा कि नहीं - नहीं, यह कैसे हो सकता है? तू यहां है, तू कैसे, कहां से आई?
उसकी प्रेयसी ने कहा: मैं घंटों से बैठी हूं और प्रतीक्षा कर रही हूं और सोच रही हु की कब तुम्हारा लिखना बंद हो तो शायद तुम्हारी आंख मेरे पास पहुंचे। वह प्रेमी बहुत पछताया...उससे बहुत बुरा लगा कि पागल हूं मैं। मैं तुझी को पत्र लिख रहा हूं और इस पत्र के लिखने के कारण तुझे नहीं देख पा रहा हूं और तू सामने मौजूद है। आधी रात बीत गई, तू यहां थी ! मुझे माफ़ केर दे मैंने तेरी तरफ ध्यान ही नहीं दिया.
परमात्मा उससे भी ज्यादा निकट मौजूद है। हम न मालूम क्या - क्या बातें किए चले जा रहे हैं। न मालूम क्या - क्या पत्र शास्त्र पढ़ रहे हैं। कोई गीता खोल कर बैठा हुआ है, कोई कुरानखोल कर बैठा हुआ है, कोई बाइबिल पढ़ रहा है। पढ़ने से मना नहीं, पर जो लिखा है उस पर चलना भी सीखो . बस पढ़ लेने से कोई ईश्वर तक नहीं पहुँचता . उस मे समाने के लिए उस के जैसा बनना पढता है. जल ही जल मे समां सकता है Iधर्म के नाम पर न मालूम क्या... क्या लोग कर रहे हैं; और जिसके लिए कर रहे हैं वह चारों तरफ हमेशा मौजूद है। लेकिन फुर्सत हो तब तो आंख उठे। काम बंद हो तो वह दिखाई पड़े.
हमेशा सुनते आये हैं की कि ईश्वर बाहर नहीं है। अंदर है। जरुरत है सिर्फ सिमरन की। शांत मन से ध्यान म बैठो ....मन की ऑंखें खोलो और देखो , तुम खुद ही ईश्वर का अंश हो... बस जरुरत है स्थिरता कि।


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