Tuesday, February 7, 2017

चित्त और ध्यान

एक *साधू* किसी नदी के पनघट पर गया और पानी पीकर पत्थर पर सिर रखकर सो गया....!!!
पनघट पर पनिहारिन आती-जाती रहती हैं!!!
तो आईं तो एक ने कहा- *"आहा! साधु हो गया, फिर भी तकिए का मोह नहीं गया*...
*पत्थर का ही सही, लेकिन रखा तो है।"*
पनिहारिन की बात साधु ने सुन ली...
*उसने तुरंत पत्थर फेंक दिया*...
दूसरी बोली--
*"साधु हुआ, लेकिन खीज नहीं गई..*
*अभी रोष नहीं गया,तकिया फेंक दिया।"*
तब साधु सोचने लगा, अब वह क्या करें ?
तब तीसरी बोली--
*"बाबा! यह तो पनघट है,यहां तो हमारी जैसी पनिहारिनें आती ही रहेंगी, बोलती ही रहेंगी, उनके कहने पर तुम बार-बार परिवर्तन करोगे तो साधना कब करोगे?"*
लेकिन चौथी ने कहा--
बहुत ही सुन्दर और एक बड़ी अद्भुत बात कह दी-
*"क्षमा करना,लेकिन हमको लगता है,तूमने सब कुछ छोड़ा लेकिन अपना चित्त नहीं छोड़ा है,अभी तक वहीं का वहीं बने हुए है।*
*दुनिया पाखण्डी कहे तो कहे, तुम जैसे भी हो,हरिनाम लेते रहो।"*
*सच तो यही है, दुनिया का तो काम ही है कहना...*
आप ऊपर देखकर चलोगे तो कहेंगे...
*"अभिमानी हो गए।"*
नीचे देखोगे तो कहेंगे...
*"बस किसी के सामने देखते ही नहीं।"*
आंखे बंद करोगे तो कहेंगे कि...
*"ध्यान का नाटक कर रहा है।"*
चारो ओर देखोगे तो कहेंगे कि...
*"निगाह का ठिकाना नहीं। निगाह घूमती ही रहती है।"*
और परेशान होकर आंख फोड़ लोगे तो यही दुनिया कहेगी कि...
*"किया हुआ भोगना ही पड़ता है।"*
*ईश्वर* को राजी करना आसान है,
लेकिन *संसार* को राजी करना असंभव है....
*दुनिया* क्या कहेगी, उस पर ध्यान दोगे तो....????
*आप अपना ध्यान नहीं लगा पाओगे...*

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